कांग्रेस और उसके हाल

ओमप्रकाश चौधरी@मालवा आजतक



हाल ही में सम्पन्न दिल्ली विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को लगातार दूसरे चुनाव में एक भी सीट  नही मिली | 70 साल तक देश में और 15 साल तक लगातार दिल्ली में राज करने वाली देश की सबसे पुरानी राजनैतिक  पार्टी की  देश की  राजधानी में इतनी बुरी हार होगी शायद ही किसी ने सोचा होगा | लेकिन नेतृत्व तो इस बात में ही मस्त है कि दिल्ली में बीजेपी हार गई फिर चाहे उसकी सीट  3 से बढकर 8 ही क्यों न हो गई हो | लेकिन देश का मतदाता इस हार का विश्लेषण  जरुर कर  रहा है |  1967 में पहली बार कांग्रेस को देश में विधान सभा चुनावो में हार का मुंह देखना पडा था |  दक्षिण भारत में तो यह सिलसिला 1962 में केरल से ही शुरू हो गया था | कांग्रेस के इस पराभव में सबसे बड़ा हाथ क्षेत्रीय दलों का है | जिन जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत होते गए वहां कांग्रेस किनारे होती गई और कहीं कहीं तो तीसरे चौथे नम्बर तक लुढक गई | तो करते है एक विश्लेषण कांग्रेस कि इस दशा पर |


शुरुआत सुदूर दक्षिण में  केरल से करते है | केरल में  कांग्रेस के पूर्ण बहुमत के आखरी मुख्यमंत्री आर शंकर थे जो कि 1962 से 1964 तक मुख्यमंत्री रहे | उसके बाद इस तटीय राज्य में कांग्रेस को कभी बहुमत नही मिला | उसके मुख्यमंत्री तो रहे पर वे गठबंधन के दम पर ही रहे | यहाँ तक कि स्थिति ऐसी भी आई की उसे एक दो बार सी पी आई के अच्युत  मेनन को भी मुख्मंत्री के रूप में स्वीकारना  पडा | इससे बुरी स्थिति तमिलनाडु में हुई जो कांग्रेस के चाणक्य के कामराज  का गृह प्रदेश रहा है | तमिलनाडू में कांग्रेस के आखरी मुख्यमंत्री थे एम् भक्तवत्सलम  जो 1967 तक मुख्यमंत्री रहे | उसके बाद द्रविड़ दलों के उदय ने कांग्रेस को हमेशा के लिए तीसरे स्थान पर धकेलकर उनका पिछलग्गू बना दिया | आंध्र प्रदेश में कलह के बीच  किरण कुमार रेड्डी 2014 में उसके आखरी मुख्मंत्री थे | जगन मोहन रेड्डी की बगावत ने सत्ता का बटवारा दोनों क्षेत्रीय दलों टीडीपी और वाई एस आर कांग्रेस के बीच  कर दिया और कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई यही हाल नये बने तेलंगाना में हुआ जहाँ कांग्रेस के ही बागी के चंद्रशेखर राव ने उसे हाशिये पर पंहुचा दिया | कर्णाटक में भी पिछले चुनाव में क्षेत्रीय दल जनता दल एस के कारण कांग्रेस न केवल सत्ता से बाहर हो गई बल्कि बीजेपी को रोकने के नाम पर मुख्मंत्री पद कि भी बली चढ़ा दी फिर भी बीजेपी को सत्ता में आने से नही रोक पाई  कांग्रेस |


पूर्वी भारत में चले तो पश्चिमी बंगाल में कांग्रेस के आखरी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर  राय थे | 1977 के बाद इस राज्य में फिर कभी कांग्रेस ने सत्ता का स्वाद नही चखा | ममता दीदी की  बगावत ने कांग्रेस को पूरी तरह किनारे कर दिया | पिछले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 2 सीटों पर सिमट  गई  यही नही कांग्रेस , वामपंथी और ममता दीदी मिलकर भी बीजेपी को नम्बर 2 होने से नही रोक पाए | त्रिपुरा में तो कांग्रेस कई दशको से सत्ता से बाहर होकर अब तीसरे स्थान पर है| उड़ीसा में हेमानंद बिस्वाल 2000 में आखरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे उसके बाद  बीजू जनता दल ने कांग्रेस के सत्ता के सपने को लगभग चूर चूर कर दिया | पिछले विधान सभा चुनाव में तो कांग्रेस तीसरे नम्बर पर खिसक गई | असम आन्दोलन के बाद कांग्रेस असम गण परिषद के उदय  के बाद सत्ता से अंदर बाहर  होती रही परन्तु पिछले चुनाव में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद असम में भी कांग्रेस सिमटती दिख रही है | यही हाल पूर्वोत्तर के छोटे राज्यों व गोवा में हो रहा है |


पश्चिमी भारत में चलें तो गुजरात में कांग्रेस कि नय्या हिचकोले खाकर चल रही है| सारे धतकरम के बाद भी 2002 से कांग्रेस कभी सत्ता में नही आई | यही नही गुजरात दंगे और अंध मोदी विरोध की  राजनीति ने नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय फलक पर उदित होने से नही रोक पाई कांग्रेस | महाराष्ट्र में शरद पंवार के विद्रोह ने कांग्रेस को उन्ही का सहयोगी दल बनने को विवश कर दिया | एक समय पंवार  की पार्टी को अधिक सीटें मिलने के बाद भी मुख्मंत्री का पद न देने वाली कांग्रेस आज महाराष्ट्र में चौथे नम्बर की  पार्टी बनकर रह गई है | और राजनितिक दुर्दिन इतने आ गये की कल तक की अपनी सबसे बड़ी शत्रु शिव सेना के मुख्यमंत्री  के अधीन सत्ता में भागीदार है | कारण व्ही लचर बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना और उससे भी  आगे अपनी पार्टी को टूटने से बचाना |


कांग्रेस कि सबसे बुरी गत बनी है देश कि सत्ता के केंद्र दो बड़े राज्यों उत्तर प्रद्रेश और बिहार में | उत्तर प्रदेश में 1989 में नारायण दत्त तिवारी आखिरी कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे | उसके बाद सपा, बसपा और बीजेपी के बीच  ही सत्ता का बटवारा होता रहा और कान्ग्रेस कभी सपा का कभी बसपा का पल्ला पकडकर चौथे पांचवे नम्बर पर संतोष करती रही | कांग्रेस के सबसे बुरे दिन पिछले लोकसभा चुनाव में आये जब उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमेठी में चुनाव  हार गए | बिहार में 1990 में जगन्नाथ मिश्र के बाद कोई कांग्रेसी मुख्यमंत्री नही बना | राजद , जनता दल और बीजेपी ही सत्ता के खिलाडी हो गए और कांग्रेस वही अपनी नियति चौथे पांचवे नम्बर को प्राप्त हो गई | अब  बचे मध्य प्रदेश , छतीसगढ़ जैसे राज्य जहाँ वह  15 साल बाद सत्ता में है | राजस्थान,उत्तराखंड और हिमाचल जहाँ वह सत्ता में आती जाती रहती है | इन राज्यों में भी वह मुकाबले में इस कारण है कि यहाँ कि राजनीती दो दलीय है | जब भी यहाँ कोई क्षेत्रीय  दल प्रभावी हुआ कांग्रेस को शायद हांशिये  पर जाते देर नही लगेगी | परन्तु लगता है कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को कोई परवाह नही वह क्षेत्रीय दलों कि छत्रछाया में ही खुश है |


जरा सोचिये 1984 के चुनाव में बीजेपी 2 सीटों पर सिमट गई थी तब उसका नेतृत्व कांग्रेस की तरह निष्क्रिय हो जाता या क्षेत्रीय दलों के भरोसे रह जाता तो क्या यहाँ पंहुचता | बेशक बीजेपी ने गठबंधन किये पर अपने को  बढाने के लिए पूरी ताकत लगा दी | कांग्रेस का  नेतृत्व , उसके नेता और कार्यकर्त्ता यह जुझारू पन  कभी दिखा  पाएँगे या नही पता नही | दूसरो के घर में लगी आग से प्रसन्न तो हुआ जा सकती है परन्तु अपने घर को संवारने के लिए मेहनत करनी ही पड़ती है |


डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति मालवा आजतक उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं.