मन्दसौर@मालवा आजतक
दो दिवसीय कार्यक्रम के तहत आज दूसरे दिन दिगम्बर जैन समाज की मन्दसौर के इतिहास में पहली बार जैनेश्वरी एलकजी की दीक्षा श्री प्रभाकरजी महाराज को आचार्य 108 श्री पुष्पदन्त सागरजी के शिष्य आचार्य 108 श्री प्रमुख सागरजी महाराज ने प्रदान की दीक्षा के इस ऐतिहासिक कार्यक्रम के साक्षी रहे अनेक महिलाए और पुरूष। मन्दसौर के 1008 श्री शान्तिनाथ जिनालय तार बंगला मन्दिर में 2 मार्च से 10 मार्च तक श्री सिध्द चक्र महामण्डल विधान की पूजा एव विश्व शांति महायज्ञ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अपने प्रवचन में 108 आचार्य श्री प्रमुख सागरजी महाराज ने कहा कि मनुष्य स्वयं के बारे में नही दुसरो के बारे में बोल सकता है। जो जैसा कहे वैसा करे वह कौशल्या के समान है। जो के कई और करे कई वह केकयी के समान है ।अपने जीवन को समझने का प्रयास करे ।इसके लिये भगवान आदिनाथ और महावीर का चरित्र देखने चाहिए।
दिगम्बर जैन सीनियर सिटीजन ग्रुप के उपाध्यक्ष एव आदिनाथ विहार मन्दिर समिति के उपाध्यक्ष श्री महावीर प्रकाश अग्रवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि आचार्य श्री ने कहा कि क्षुल्लक श्री प्रभासगरजी ने 13 वर्ष की आयु में आचार्य पुष्पदन्त सागरजी से इटावा में दीक्षा ली ।
आज उन्ही की आज्ञा से वे क्षुल्लक क्षुल्लक दीक्षा मन्दसौर समाज की उपस्थिति में ले रहे है। दीक्षा के पश्चात एलक प्रभासगरजी को विजेंद्र सेठी परिवार द्वारा पिच्छी भेट करने का लाभ लिया गया। कमंडल भेंट करने का लाभ डॉ वीरेंद्र गांधी परिवार को तथा शास्त्र भेंट करने का लाभ समरथमल जैन सीहोर परिवार को मिला।
इस अवसर पर अचार्य 108 श्री प्रतीक सागरजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि तीर्थकरों के जन्म से पहले रत्नों की वर्षा होने लगती है।जब वे वैराग्य की यात्रा पर निकलते है तो लोकत्तिक देव उनकी अगवानी करते है। जब वे वन की और जाते है तो मनुष्य को उनकी पालकी उठाने का सौभाग्य मिलता है। निर्वाण का बीज बोने पर चतुर्थ काल मे इसका फल अवश्य मिलता है। संयम का भाव जब मनमे आता है तो गुरु चरणों मे शीश नवाने पर आशीष आवश्य मिलता है। आज इस दिशा के अवसर पर आप सब भी किसी एक नियम का संकल्प लेकर जाए यही आपकी दीक्षार्थी की सच्ची अनुमोदना होगी। श्री प्रभासगरजी ने कहा कि जीवन मे आत्म साधना अंदर करनी चाहिए। छोटे नियम लेकर आगे बढ़े। अपने घर को तपोवन समझे ।विधान के पश्चात एक नियम अवश्य लेना चाहिए। जो लक्ष्य हमे दिया जाता है उसका पालन करना चाहिए।
मन्दसौर की पवित्र धरा पर वह ऐतिहासिक क्षण जैनेश्वरी दीक्षा का रहा जब इस अवसर पर आचार्य श्री प्रमुख सागरजी ने क्षुल्लक श्री प्रभाकरजी को इनके धर्म के माता-पिता सुनीता अजयकुमार बाकलीवाल व समाज जनों की उपस्थिति में एलक की दीक्षा विभिन प्रश्न पूछ कर प्रदान की। इसके पूर्व प्रातः आचार्य द्वय श्री प्रमुख सागरजी व श्री प्रतीक सागरजी के सानिध्य व मार्ग दर्शन में श्रीजी की रथ यात्रा के साथ दीक्षा ले रहे क्षुल्लकजी श्री प्रभाकर जी का वरघोड़ा नगर के प्रमुख मार्गों से निकला।
प्रारंभ में आचार्य 108 श्री पुष्पदन्त सागरजी महाराज के चित्र का अनावरण और दीप प्रज्वलन श्री विजेंद्र सेठी परिवार ,श्री अजय बाकलीवाल परिवार ने किया। मंगला चरण श्रीमती रुनझुन पाटनी ने किया। पाद प्रक्षालन सुनील सागर युवा संघ ने किया। शास्त्र भेंट सोभाग्यमल पापडीवाल परिवार ने किया।श्रीफल भेट जावरा,नीमच, चित्तौड़, भीलवाड़ा ,सीतामऊ इटावा के श्रावक श्रेष्ठी ,मन्दसौर हूमड समाज नेमिनाथ मन्दिर अग्रवाल समाज आदिनाथ विहार मन्दिर समाज द्वारा किया गया। संचालन,प.अरविंद जैन व श्री प्रकाश जैन कुचड़ोद ने कीया।
जीवन मे परोपकार का महत्व
परोपकार दो शब्दों के मेल से बना है- पर+उपकार, अर्थात दुसरो की भलाई करना। परोपकार एक ऐसी विभूति है , जो मानव को मानव कहलाने का अधिकार बनती है। यह मानवता की कसौटी है, जैसा कि राष्ट्रीय कवि मैथलीशरण गुप्त ने लिखा है 'वही मनुष्य जो मनुष्य के लिए मरे'
वस्तुत: निस्वार्थ भावना से दूसरों का हित साधन ही परोपकार है। मनुष्य अपनी सामर्थय के अनुसार ही परोपकार कर सकता है। दुसरो से प्रति सहानुभूति करना ही परोपकार है और सहानुभूति किसी भी तरह की जा सकती है। किसी निर्धन की आर्थिक सहायता करना अथवा किसी असहाय की रक्षा करना परोपकार के रूप है। किसी भूखे को अन्नदान करना, या किसी राहगीर को कुमार्ग से हटा देना, किसी दुःखी-निराश की सांत्वना देना जिसमे किसी को लाभ पहुँचता है और मन को संतुष्टि मिलती हो वह कार्य परोपकार के समान है। परोपकार एक महान भावना है। परोपकार से ही मानव उन्नति और सुख-सम्रद्धि प्राप्त कर सकता है। मानव इस युग मे अकेला कुछ भी करने में समर्थ नहीं है। वह समाज के साथ ही मिलकर ही सफलता प्राप्त कर सकता है।
परोपकारी का अच्छा उदाहरण जावरा के युवान दे रहे हैं, कहते है कि गुरु 'भगवान' के समान होता है तो वही जावरा की युवा शक्ति है जो की जैन समाज के किसी भी समुदाय के साधु-साध्वी को विहार करवाना उन्हें 8-10 किलोमीटर का पैदल विहार कर उन्हे सुरक्षित एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुचाना। यह कार्य वहां की संस्था विहार सेवा जावरा द्वारा किया जाता है, सभी युवान निस्वार्थ भाव से साधु-साध्वी की सेवा करना यह कार्य जावरा की जनता ओर आस-पास के इलाको में अपनी अलग ही छाप छोडता है, यह कार्य परोपकारी का एक अलग ही संदेश देता है
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई॥
दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने आज इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।