मंदसौर@मालवा आजतक
मंदसौर में ऐतिहासिक किले का निर्माण 15 वी शताब्दी में मांडू के सुल्तान हुशंगशाह ने करवाया इसका प्रमाण गुजरात में मिले ग्रंथ निराली सिकंदरी में है यह किला अपने राज्य के उत्तरी और पश्चिमी सीमा की सुरक्षा हेतु करवाया गया यहां कोई स्वतंत्र राज्य नहीं था परंतु किला मांडू के सुल्तान के अधीन था चित्तौड़ पर आक्रमण करने जाते समय उनकी सेना यहां से गुजरती थी तब अतिरिक्त सेना जो होती थी वह यहां रुकती थी जहां उनका मुख्यालय था लगता है। मंदसौर मालवा और मेवाड़ का संधि स्थल रहा है यह दोनों के मध्य स्थित होने के कारण इस दुर्ग पर मालवा और मेवाड़ तथा मुगलों का समय समय पर शासन होता रहा है। मंदसौर के इस खंडहर नुमा दिखने वाले किले के भी अब दिन फिरे हैं जब कलेक्टर मनोज पुष्प ने इसका निरीक्षण कर इसके रखरखाव के निर्देश दिए।
मंदसौर का प्राचीन इतिहास गौरवपूर्ण है पूरा विद श्री कैलाश चंद्र पांडे ने बताया कि पांचवी से सातवीं शताब्दी तक ओलिकर वंश यहां रहा। ऐसा प्रमाण भानपुरा में एक खंडित शिलालेख जो 475 ईसवी काहे से पता चलता है महाराणा कुंभा ने जब मांडू के सुल्तान को पराजित किया तब सॉल्वी शताब्दी में उनका इस पर कब्जा हुआ महाराणा कुंभा के किलेदार अशोक मूल राजपूत को यहां की जिम्मेदारी सौंपी गई 18 वीं शताब्दी में यह मराठों के कब्जे में आया उस समय ग्वालियर के शासक सिंधिया जी के यह कब्जे में था 26 अगस्त 1857 से 63 दिन तक यह शहजादे फिरोज के कब्जे में रहा जिसे दिल्ली के मुगल बादशाह के परिवार का होना बताया गया ऐसा बताया जाता है कि उस समय उसका राज्यारोहण हुआ था।
पूरा विद श्री पांडे ने बताया कि 24 सितंबर 1857 को शहजादा फिरोज का अंग्रेजों की सेना से गुराडिया में युद्ध हुआ था जिसमें वह पराजित हो गया तो फिर वहां से भागकर उत्तर प्रदेश की ओर चला गया मुगल सम्राट का गौरवशाली पक्ष यह भी है कि चित्तौड़ के दूसरे साके(जोहर) के समय चित्तौड़ की महारानी कर्मण्य वती ने राखी भेजकर मुगल सम्राट हुमायूं को आमंत्रित किया था तब हुमायूं ने इस किले में अपनी सेना सहित लगभग एक माह रुका था कि नए से उत्तर पश्चिम में गुजरात के शासक बहादुर शाह गुजराती की सेना तालाब किनारे यहां ठहरी थी सामान्य युद्ध में अपनी पराजय देखकर गुजराती यहां से भाग गया यहां 5 वी से 7 वी शताब्दी में कोई डेढ़ सौवर्षो ओलिकर वंश रहा। उसके बाद होशंग शाह से लेकर फिरोजशाह तक के राजवंशों ने यहां शासन किया अकबर ने 1561 में जब अपने राज्य का पुनर्गठन किया तब मंदसौर एक सरकार के रूप में विकसित हुआ।
1925 में सिंधिया ने यहां सुबायत कायम की थी।तब यहॉ कलेक्टर कार्यालय का भवन बना था। उस समय लकड़ियों के मकान होते थे लेकिन वह स्ट्रक्चर या नहीं थे दिल्ली के सुल्तानों की तरफ से माथुर परिवार को कानूनगो के रूप में पदस्थ किया गया था जिनकी सात मंजिला हवेली भी कभी इस किले में हुआ करती थी जो 400 वर्ष पुरानी हो गई थी।
मंदसौर के इस किले की खासियत एक और यह है कि इसमें 12 दरवाजे है लेकिन देखरेख के भाव में जहां यह दरवाजे कुछ क्षतिग्रस्त हुए हैं वही इस किले की चार दिवारी जिसे परकोटा भी कहा जाता है को कुछ जगह से नुकसान पहुंचाया गया तो कुछ जगह से वह गिर गई है यह सभी 12 दरवाजे अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं दक्षिण पूर्व में नदी दरवाजा इसका मुख्य मार्ग था उसका निर्माण 1496 मुखबिर खान ने कराया था इसका दूसरा दरवाजा भी बहुत प्रख्यात है वर्तमान में उसे मंडी गेट के नाम से भी जाना जाता है इस दरवाजे पर 18 57 की क्रांति के दौरान शहजादा फिरोज की सेना ने जीरन के मैदानी युद्ध में 12 अक्टूबर 1857 को कैप्टन और टक्कर के सर काट डाले थे उनको इस गेट पर टांग दिया था विद्रोह की समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने प्रतिकार स्वरूप इसी दरवाजे के सामने 4 क्रांतिकारियों को फांसी देने का निर्णय लिया था लेकिन एन समय पर एक क्रांतिकारी लाला सोहरमल को छोड़कर 3 क्रांतिकारियों को 18 दिसंबर 1958 को फांसी दी गई थी।
श्री पांडे ने बताया कि स्वतंत्र भारत का पहला ध्वजारोहण भी सूबा श्री एस पी मेहता के द्वारा इसी किले प्रांगण में स्थित सुबायत( कलेक्टर) कार्यालय में किया गया था ।तब कलेक्टर निवास पुराना जिला शिक्षा कार्यालय मे था। श्री मेहता यहां 1954 तक रहे उनके पूर्व यहां 28 अप्रैल 1947 तक श्रीजी बी झवँर और 17 फरवरी 1952 तक श्री ए ए पाटिल रहे।
इस किले की 12 दरवाजों में 11 उद्री दरवाजा दिल्ली दरवाजा, लक्ष्मण साह दरवाजा ,चोबदार गट्टा दरवाजा, नाव घाट दरवाजा, गोंडी घाट दरवाजा, कुंवारी गेट इस प्रकार इन दरवाजों के नाम आज भी उसी प्रकार लिए जाते हैं। यह नगर प्राचीन है। वर्तमान में किले के ऊपर बसी हुई बस्ती को शहर क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस किले की दीवारे 20 -20 फिट तक चोड़ी है तथा 40 फीट ऊंची है। यह दीवारे पत्थर ,मिट्टी व चूने से बनी हुई है। इस किले के अंदर 2 प्राचीन बावड़ियां है।श्री पांडे के अनुसार इन बावड़ियों के नाम जनानी और एक शकर बावड़ी है। यहां हमाम भी बने हुए है।
पुरातत्व था श्री पांडे ने बताया कि 1978 में इस ऐतिहासिक महत्व के दुर्ग को संरक्षित करने के लिए पद्मश्री डॉ वी श्री वाकणकर के मार्गदर्शन में इसका मानचित्र बनाकर पुरातत्व विभाग को दिया गया था लेकिन आज तक शायद वह वहीं पड़ा है।
मंदसौर में 1947 से 2018 तक 43 कलेक्टर रहे इनमें पहले कलेक्टर श्री मेहता थे जिन्होंने पहलाद ध्वजारोहण किया तथा इस किले का निरीक्षण करने वाले 45 वे कलेक्टर श्री मनोज पुष्प है जिन्होंने इसका फरवरी 2020 में निरीक्षण कर इसके रख रखाव के आवश्यक निर्देश दिये।इसके बाद इस किले की ऐतिहासिक बावड़ी का निरीक्षण जिले के प्रभारी मंत्री श्री हुकुमसिंह कराड़ा ने किया। कलेक्टर श्री मनोज पुष्पने निरीक्षण के बाद बताया कि हम चाहते हैं कि इस किले पर जितनी भी प्राकृतिक और पुरातात्विक धरोहर है वह सुरक्षित रहे मंदसौर में ऐसी बहुत सी प्राकृतिक और पुरातात्विक महत्व की चीजें हैं जिनको संरक्षण किया जाना जरूरी है इन धर्मों से लोगों को जोड़ना भी जरूरी है इन प्राकृतिक और पुरातात्विक महत्व की चीजों को सजाया सवारा जाए जिससे लोग वहा परिवार के साथ जाए औरउन्हें देख कर आनन्द ले सके ।
उन्होंने बताया कि किले के जो द्वार हैं और किले से जुड़े जो संरचनाएं हैं उनका भी सौंदर्य करण किया जाना है जो गेट हैं और स्ट्रक्चर हैं उन्हें भी ठीक किया जाना है एक वह स्ट्रक्चर तालाब जैसा किले से कोर्ट क्यों और जाते हैं वहां है उस तालाब के पास से कोर्ट तक जा सकते हैं वह बड़ी रमणीक जगह है वहां फैमिली के साथ समय बिताया जा सकता है। इस किले के सौंदर्यीकरण का एस्टीमेट बनवा रहे हैं। पुरातत्व विभाग को इसके निर्देश दिए गए हैं सौंदर्यीकरण में भी यह ध्यान रखा जाएगा की इसका मूल स्वरुप बना रहे लक्ष्मण साह मंदिर को भी मूल स्वरूप व संरक्षित करने की कोशिश की जा रही है ।इस ऐतिहासिक महत्व के किले को जितना संरक्षित हो सकता है उतना करने का प्रयास करेंगे।